Wake up Anna Hazare – अण्णा!! तुम्हें चेतना होगा

तेज़ हवा में दीपक की लौ स्थिर नहीं रह सकती. कोई आंदोलन चलाया जाता है तो भीड़ बहने लगती है. भीड़ की मानसिकता के दबाव में मेरे जैसे आम आदमी का बह जाना एक आम बात है. फिर भी प्रकृति ने प्रबंध किया हुआ है कि कुछ स्थित-प्रज्ञ लोग आसपास उपलब्ध होते हैं जो भीड़ से भरी स्थितियों का तटस्थ रह कर आकलन करने की शक्ति रखते हैं.
अण्णा हज़ारे के आंदोलन को लेकर कई ब्लॉग्स पर पोस्ट्स आई हैं. अधिकतर अण्णा में दिख रहे गाँधी की आँधी में बही हुई पोस्ट्स हैं. लेकिन उन पर आई कुछ टिप्पणियों में वस्तुनिष्ठ बातें कही गई हैं. मैं उनमें से दो को विशेष रूप से यहाँ दे रहा हूँ और उन्हीं की पृष्ठभूमि में बात करना चाहता हूँ.

पहली टिप्पणी मेरी बाते ब्लॉग पर विजय माथुर की थी जिसमें उन्होंने लिखा:

भावावेश मे अन्ना का आपने समर्थन किया है,कर सकते हैं,परंतु राष्ट्र-हित की भी सोचे । अमेरिका अपनी डोलती आर्थिक स्थिति मे भारत द्वारा उसे दिये कर्ज की वापसी की आशंका से ग्रसित था उसने अपने अधिकारियों के माध्यम से अन्ना और उनकी मंडली को भड़का कर यह आंदोलन करा दिया जिसे मनमोहन सरकार का पूरा वरद-हस्त प्राप्त है। पी एम साहब तो वर्ल्ड बैंक एयर I M F के पुराने चहेते हैं ही। यह सारा नाटक आदिवासी समस्याओं ,मजदूरों के उत्पीड़न,महिला शोषण आदि से ध्यान हटाने हेतु है। इस पर भी गौर करे।  (यह टिप्पणी 19-08-2011 को देखी गई)
दूसरी टिप्पणी भारत के भावी प्रधान मंत्री की जबानी पर दिनेशराय द्विवेदीकी थी. उन्होंने लिखा:
कितने लोग समझते हैं और विश्वास करते हैं कि पूंजीवाद भ्रष्टाचार के मूल में है? फिर यह सच भी अधूरा है। भ्रष्टाचार तो तब भी था, जब पूंजीवाद नहीं था। वस्तुतः भ्रष्टाचार की जड़ है व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार और वर्गीय समाज। इस सच को कितने लोग समझते हैं? यदि नहीं समझते हैं तो आप कहेंगे समझाना चाहिए। लेकिन समझाने से कोई नहीं समझता। लोग समझते हैं अपने अनुभव से। यह आंदोलन जो उमड़ पड़ा है वह इसीलिए है कि लोगों की सहनशक्ति जवाब दे रही है। सरकार इसे समझ नहीं रही है। हो सकता है यह केवल दूध का उफान हो औऱ कुछ ठंडे पानी के छींटों से बैठ जाए। लेकिन यह उफान जनता को बहुत चीजों की सीख दे जाएगा, अनुभव दे जाएगा।
 
फिर क्या पूंजीवाद को आज समाप्त किया जा सकता है? मेरा उत्तर है कि नहीं किया जा सकता। इस से अगली व्यवस्था के लिए भी आर्थिक शक्तियों का उस के अनुरूप विकास होना जरूरी है। जब तक वे विकसित नहीं हो जाती वह भी संभव नहीं है। लेकिन पूंजीवाद को झेलना दुष्कर हो रहा है। इसे नियंत्रित करना ही एक मात्र मार्ग है। इसे गरीब और श्रमजीवी जनता के हित में नियंत्रित करना पड़ेगा। जनतंत्र को पूंजीपतियों और भूस्वामियों के गोदामों से निकाल कर आम जनता की धरोहर बनाना पड़ेगा। इस के विकास के मार्ग खोलने पड़ेंगे। ताकि समाज को विकास की अगली मंजिल में प्रवेश के द्वार तक पहुँचा जा सके। हमें जनतंत्र के लिए लड़ना पड़ेगा। ऐसा जनतंत्र जिस में जनता को अधिक से अधिक हिस्से को निर्णयों और प्रशासन में भागीदार बनाया जा सके। जिस में भ्रष्टाचार न हो, जिस में अधिक से अधिक चीजें पारदर्शी हों।(यह टिप्पणी 19-08-2011 को देखी गई)
विजय माथुर की टिप्पणी का प्रथम भाग इस आंदोलन में अमेरिकी हाथ होने की बात कहता है. इसका संबंध कूटनीति से है, ज़ाहिर है कि अगर हाथ है भी तो वह दिखाई नहीं देगा. दूसरे भाग में भारत की आंतरिक समस्याओं (आदिवासी समस्या, मज़दूर उत्पीड़न, महिला शोषण) की बात कही गई है. इस पर विश्वास करना आसान है क्योंकि ऐसी समस्याओं से ध्यान हटने के लिए सरकार बहुत कुछ करती रही है.
इसी बात को प्रकारांतर से दिनेशराय द्विवेदी जी ने भी कहा है साथ ही उन्होंने भ्रष्टाचार की समस्या की जड़ तक जाने का प्रयास करते हुए इसके लिए व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकार और वर्गीय समाज को इंगित किया है और इसके लिए पूंजीपतियों और भूस्वामियोंपर सीधे उँगली रखी है जिनके गोदामोंमें लोकतंत्ररखा हुआ है.
मैं द्विवेदी जी की बात से सहमत हूँ कि हमारा लोकतंत्र वास्तव में गोदाम में रखी चीज़ की तरह है. गाँवों में 70-80% लोग स्वतंत्र रूप मतदान नहीं कर पाते. गरीब का वोट या तो दबाव का शिकार हो जाता है या उसे बिकना पड़ता है. यह जग ज़ाहिर है. इस स्थिति में मैं दिनेशराय जी की टिप्पणी को महत्व देता हूँ क्योंकि वे भ्रष्टाचार की समस्या के वास्तविक बिंदु पर बेबाक़ उँगली उठाते हैं यद्यपि उन्होंने इस समस्या के पीछे छिपे धर्मके तत्त्व को नहीं छुआ है.
अब रही अण्णा के आंदोलन की बात. यह अभी धरती की वास्तविकता से सदियों दूर है. जो लोग भ्रष्टाचारी व्यवस्था से ग्रस्त हैं वे अभी संगठित होकर इस आंदोलन के साथ जुड़ पाने की हालत में नहीं हैं. अभी तुम अधूरे हो अण्णा. शुभकामनाएँ ज़रूर तुम्हारे साथ हैं. 

इस आंदोलन की कमज़ोरी दर्शाती छवियाँ (चित्र Bitter talk , But real talk के साभार) :-

NGO NGO SCAM SCAM
गैर सरकारी संगठन लोकपाल बिलों में क्यों नहीं

 

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24 Responses to Wake up Anna Hazare – अण्णा!! तुम्हें चेतना होगा

  1. भूषण जी,
    बेहतरीन पोस्ट है। मैं ने टिप्पणी में धर्म का उल्लेख किया था। लेकिन धर्म समाज में भेद का मूल आधार नहीं। वह तो उपकरण मात्र है जिस का उपयोग वर्गीय व्यवस्था में शोषक अपने हितों के लिए करता है।

  2. Bhushan says:

    @ दिनेशराय द्विवेदी जी,
    आपका आशय मुझे स्पष्ट हुआ. आपने सही कहा है.

  3. अमरीका वाला आरोप वाहियात लगता है यह कट्टर अन्ना विरोधियों का काम है !
    मगर अन्ना जिद के साथ लोकतान्त्रिक व्यवस्था में रहते हुए कितना करा पायेंगे, इसमें संदेह है ! जो कुछ हो लोकतांत्रिक व्यवस्था में रहते हुए हो वाही अच्छा होगा ! तानाशाही किसी भी देश को बर्बाद करने के लिए काफी है !
    शुभकामनायें !

  4. अच्छा। देखते हैं क्या होता है? आपको मेरे चिट्ठे से टिप्पणी नकल करने में दिक्कत नहीं हुई? वैसे अन्ना को सरकार ने ही इतना प्रसिद्ध बनवाया है, इसमें कोई संदेह नहीं।

  5. विभिन्न तबकों के भिन्न भिन्न विचार हो सकते हैं. परन्तु आज सभी समस्याओं की जड़ में “भ्रष्टाचार” एक कारक है. यह खेद जनक है कि सबसे अधिक उत्पीडित वर्ग ही अभी संघठित हो सामने नहीं आ पाया है. एक शुरूआत तो हुई. क्यों न इस पहल का स्वागत करें. श्री द्विवेदी के विचार तथ्यपरक हैं.

  6. Vijai Mathur says:

    मेरे दोनों ब्लाग्स पर आपकी टिप्पणियों के लिए धन्यवाद।
    दिवेदी जी की बात से असहमत होने का प्रश्न ही नहीं है।
    वस्तुतः आपने खुद ही मान लिया है कि धर्म के प्रचलित रूप ही भ्रष्टाचार के मूल मे हैं,मैं तो अपने चारों ब्लाग्स पर इन ढोंग-पाखंड का लगातार विरोध करता आ रहा तथा खाकी नेकर वालों की गलियाँ सुनता-पढ़ता आ रहा हूँ।
    यदि अमेरिका पर आरोप वाहियात है तो अमेरिकी सीनेटर एवं प्रवक्ता अब सफाई क्यों देते फिर रहे हैं। संघ-गिरोह के लोग झूठी अफवाहें फैला कर भीड़ बटोरते और मियां-मिट्ठू बनते रहते हैं।

  7. Jyoti Mishra says:

    very crucial points u have mentioned here. Even I agree that what job anna has done is undoubtedly commendable but there are few things which I don't agree at all.

  8. Jyoti Mishra says:

    I have sent u a mail plz check it and I want u to share that with all fellow bloggers.

  9. बहुत अच्छा विश्लेषण…

  10. G.N.SHAW says:

    जो भी हो त्रस्त जनता को न अमेरिकी हाथ और न पूंजी पति से कुछ लेना -देना है ! उन्हें तो इस अराजकता को समाप्त करने के लिए सरकार पर दवाव देने से सरोकार है , जिससे समाज बदल सके ! अन्ना तो एक छोटी सी चिंगारी है जो झोपड़ी ( भ्रस्ताचार )जलने के लिए काफी है ! जरुरी फल तो हमारे योगदान के ऊपर मिर्भर है ! आगे – आगे देखे होता है क्या ? काश शीघ्र मतदान के समय होते ?

  11. रेखा says:

    भूषण अंकल ,मैं आपकी बहुत इज्जत करती हूँ .पहली बात तो मेरी पिछली पोस्ट में मेरे विचार नहीं थे ,ये आलेख मेरे पति ने लिखे थे और उन्हीं के द्वारा अपील भी की गई थी.और मैं ये बात दावे के साथ कह रही हूँ कि वे भावावेश में आकर किसी भी गलत व्यक्ति का समर्थन नहीं कर सकते ,गलत बात पर उन्होंने कभी मेरा भी समर्थन नहीं किया है तो अन्ना को वे कितना जानते हैं …..दूसरी बात उनका इरादा किसी व्यक्ति विशेष का समर्थन करना नहीं था ….यहाँ बात सिर्फ विचारों और उद्देश्यों के समर्थन का है.अन्नाजी कि जगह कोई और भी अगर भ्रष्टाचार का विरोध करेगा तो उसे जनसमर्थन अवश्य प्राप्त होगा . जिस सम्बन्ध में उन्होंने आलेख लिखा है उसके बारे में विशेष जानकारी भी रखते हैं वो इसलिए मैंने उन्हें अपने ब्लॉग पर विचारों को रखने की अनुमति दी थी …

  12. अन्ना का उद्देश्य अच्छा है, जिद गलत. उनके बिल में भी कुछ सुधार की गुन्जायस है..इस लिए आंदोलन के साथ, बातचीत का रास्ता भी खुला रखना चाहिए.

  13. Bhushan says:

    @ रेखा बिटिया, मैंने आपके ब्लॉग पर जो टिप्पणी दी है वह किसी व्यक्ति पर नहीं थी बल्कि विजय माथुर जी की टिप्पणी में निहित कुछ बिंदुओं को लेकर थी. अन्ना की सदाशयता को लेकर मुझे कोई संदेह नहीं है. राजकुमार झा जी ने अपने विषय को बहुत बढ़िया तरीके से संप्रेषित किया है और मैंने उसे पूरे सम्मान के साथ पढ़ा है.

  14. veerubhai says:

    अच्छी बात है विमर्श होना चाहिए .विमर्श ही लोकतंत्र की ताकत है …….मैं इसी ताकत के तेहत आपसे पूर्णतय :असहमत होने का अधिकार रखता हूँ .
    ram ram bhai

    शनिवार, २० अगस्त २०११
    कुर्सी के लिए किसी की भी बली ले सकती है सरकार ….
    स्टेंडिंग कमेटी में चारा खोर लालू और संसद में पैसा बंटवाने के आरोपी गुब्बारे नुमा चेहरे वाले अमर सिंह को लाकर सरकार ने अपनी मनसा साफ़ कर दी है ,सरकार जन लोकपाल बिल नहीं लायेगी .छल बल से बन्दूक इन दो मूढ़ -धन्य लोगों के कंधे पर रखकर गोली चलायेगी .सेंकडों हज़ारों लोगों की बलि ले सकती है यह सरकार मन मोहनिया ,सोनियावी ,अपनी कुर्सी बचाने की खातिर ,अन्ना मारे जायेंगे सब ।
    क्योंकि इन दिनों –
    “राष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,महाराष्ट्र की साँसे अन्ना जी ,
    मनमोहन दिल हाथ पे रख्खो ,आपकी साँसे अन्नाजी .
    http://veerubhai1947.blogspot.com/

  15. Apanatva says:

    yuva varg me jo jagurkata dikhee desh ke prati jimmedareeya unhone samjhee usase aatm bal Annajee ka aur hum sabhee ka bad gaya…….
    hum honge kamyab ek din poora hai vishvas….
    aur ha …..
    kuch to log kahenge …..
    logo ka kaam hai kahna……

    dekhana hai bahrapan kub theek hoga……sarkaar ka……..

  16. Bhushan says:

    This comment has come from Mr. G.L. Bhagat via email
    GL Bhagat ✆ to me
    show details 11:33 PM (3 hours ago)
    “as long as there is no representation of the depressed classes in judicature and administration, any law including lokpal is suicidal for the future of democracy. it will lead to another jajmani attack on dalits.
    keep it on your record.”

  17. Bhushan says:

    @ veerubhai, भाई साहब, आपका असहमत होना मेरे लिए महत्वपूर्ण है. मैंने वही कहा जो मेरे देखने, सुनने, पढ़ने में आया.

    @ Apanatva, आदरणीय सरिता जी, आपकी टिप्पणी सारी स्थिति पर सटीक बैठती है. हम सभी कुछ न कुछ कहते रहेंगे. आप हमें खरी-खरी सुनाइये, हम सरकार की तरह बहरे थोड़े ही न हैं :))

  18. अच्छा विमर्ष।
    तार्किक विश्लेषण में सिक्के के दोनों पहलुओं का ध्यान रखा जाना चाहिए।

    लेकिन देखिए, कितना विरोधाभाषी तथ्य है- ‘भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने के लिए किए जा रहे आंदोलन की जड़ में ही भ्रष्टाचार है।‘

    इस तरह के तार्किक विरेधाभाष वाले विमर्ष के द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुंचना संभव नहीं है।

  19. ZEAL says:

    @–अभी तुम अधूरे हो अण्णा. शुभकामनाएँ ज़रूर तुम्हारे साथ हैं….

    —–

    जिसे आप अधूरा समझते हैं , उसे पूरा होने में योगदान कीजिये।

    .

  20. Bhushan says:

    Mr. Rattan Gottra has sent this comment via email-
    Rattan Gottra ✆ 1:55 PM

    “We may not support the person (Anna), but we must support the cause; because corruption is destroying the very fabric of democratic society established by our forefathers like Dr. Ambedkar.”

  21. Bhushan says:

    @ mahendra verma जी,
    @ ZEAL, डॉ दिव्या जी,
    आपके विचारों से सहमत हूँ. मैंने इस पोस्ट में दूसरे पक्ष को केवल शामिल भर किया है. यह दूसरा पक्ष कई आशंकाओं से घिरा है. टिप्पणियों से यह स्पष्ट भी है. पोस्ट में मैंने नहीं लिखा लेकिन यहाँ उल्लेख कर रहा हूँ कि मुझे अण्णा के साथ जम्मू के सांबा ज़िला में वाटरशेड परियोजना के सिलसिले में एक दिन बिताने का अवसर मिला है. अपने कार्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का मैं कायल हूँ. इसी लिए कहता रहता हूँ कि इस व्यक्ति की सादगी देश की हवा को प्रभावित ज़रूर करेगी.

  22. आदरणीय श्री भूषण जी,
    इस जंग में अपनी अपनी कलम से अनना का साथ देना है!
    आपका प्रयास सराहनीय है!

  23. ऐ मेरे वतन के लोगो ,

    ज़रा उठो संभलो , जागो .,

    अन्ना हजारे का समर्धन करो

    देखो -देखो ये भ्रष्टाचारी राजनेतिक नेता को ,

    कहाँ ले चले तुम्हारे देश को .

    अब भी वक़्त है , छीन लो इनके हाथों से ,

    अपने भारत माँ को ,

    http://www.vpsrajput.in

  24. veerubhai says:

    भूषन जी ,इस दौर में आप लोगों की टिप्पणियाँ ही लिखने की प्रेरणा बनी हुईं हैं .शुक्रिया आपका .आन्दोलन के चित्र चस्पां करके आपने बहुत नेक काम किया है .लोग पढ़े और जनता की साँसों उसांसों की टोह लें .

    रविवार, २१ अगस्त २०११
    सरकारी “हाथ “डिसपोज़ेबिल दस्ताना “.
    http://veerubhai1947.blogspot.com/2011/08/blog-post_5020.html

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